समय के अंत की और...

 माना कि वह सभी आगे निकल जाएंगे,

समय बीत जाएगा, परिवर्तन होगा, लक्ष्य बदल जाएंगे और प्राथमिकताएं भी । पर इंसान वही रहेगा, शायद आज जो करने में असमर्थता है, वह कहीं सरल बन जाएगा। मन की कुछ व्याधियों पार हो चुकी होगी। जीवन के करतब का दैनिक दर्शक बन उच्छृंखलता का विलोप भी संभव है…

 कुल मिलाकर अंत में यही ठीक लगता है कि मैं स्वयं को बदलूं दूसरों की यात्रा से नजर हटा अपने भीतर नजर डालूं।अपने यात्रा के अगले पड़ाव की और बढ़ू क्योंकि यात्रा के मार्ग अलग हो सकते हैं उनमें हम आगे या पीछे हो सकते हैं पर गंतव्य तो एक ही है ना । और सुनो अगर तुमसे पहले और कोई उसे कर्तव्य तक पहुंच गया हो तो तुम हर्षित रहो क्योंकि हम सभी एक ही सर्वोत्तम के ही अंश है तो समझो उसकी वजह भी तुम्हारे ही विजय है जीवन मौलिक से उत्तम बनने की प्रक्रिया है जो निरंतर चलती रहेगी जब तक उत्तमता का सर्वाधिक विस्तार न हो जाए और ...

अगर तुम विजई नहीं तो यह तुम्हारा अंत नहीं।



Comments

Popular posts from this blog

How Google Has Made Students Life Easier?

Who's She? She don't know!

The late night dreams