4 Feb 2025
एक दशक पहले, सर्द हवाओं के बीच
सितारों की चादर ओढ़े, एक रात आई थी
दुल्हन को ले जाने, बाबुल के घर बारात आई थी
सभी संजोए ख्वाबों को जीने,
बिटिया के जन्म से लेकर अबतक की तैयारियों की,
सौगात आई थी
सौंपने को अपनी नन्ही कली का हाथ सुयोग्य वर को आज,
न्योछावर थी पिता की संचित श्री,
बिटिया का कहीं गौरव न घटे,
बढ़ता रहे सुख, सौभाग्य उसका,
चाहत पिता की यही उसकी बिदाई पर थी।
एक दशक पार कर आज फिर लौटी है वहीं रात
पर तब्दील हो गया है मंगलमय गीत, सन्नाटों के स्वर में
बधाई और अभिवादन, रिश्तों के खालीपन में
क्यूंकि ना बाबुल रहा, और ना ही उसकी बिटिया
इस रात के साथ केवल उनकी यादें लौटी हैं।
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