कलम चरित्र


फिर उस पुरानी सी कलम को हाथ में ले बैठे हैं कुछ शब्दों को अपनी कल्पना का कथन बनाने । कलम तो वही है जिसने रंगे है ना जाने कितने कागजों को अपनी स्याही से, पर हर लेखन के समय एक नया कागज चुना जाता है । स्याही और कागज मानो दो प्रेमी है जिनका अगुआ है कलम । काव्य सृजन के लिए स्याही का कागज से लिपटना या मिलन का कार्य कलम का दायित्व है। हर श्वेतपत्र की प्यास बुझाने कलम को निमित्त बना, स्याही अवश्य आती है वह आज फिर आई है और कोई कागज़ आज फिर रंगा गया है। लेखन अभिलेखित होने के बाद कागज़ और स्याही सराहे जायेंगे, हो सकता है पूजे, चूमे या सजाए भी जाए पर कलम सदैव तत्पर रहेगा अपने चरित्र को निभाने बिना किसी सराहना की अभिलाषा के, निभाएगा वो अपने पात्र को फिर एक निमित्त बनकर एक सुंदर सृजन के लिए।


नोट:–उपयुक्त लेख के रचयिता ने इसे बिना किसी समीक्षा के प्रकाशित किया है अगर आपकी ओर से कोई टिप्पणी हो तो उसका स्वागत है।


Comments

Popular posts from this blog

See you at the infinity ♾

Who's She? She don't know!

I erased it cause you may not like it..