छठ पूजा


लोकमान्यता का एक ऐसा महा पर्व जो बड़े शहरों में जा बसे लाखों लोगों को विवश कर देता है अपने घर लौटने को, गांव लौटने को, "बिहार" लौटने को। छठ पूजा के आगमन का अनुभव दीवाली बीतने के साथ ही शुरु हो जाता है। हवा में छठ गीतों के मधुर बोल मिश्रित होकर, सुनने वालों को अनुस्मरण करती हैं अपनी संस्कृति ,सभ्यता और लोक परंपरा के अनुपम संयोग के त्योहार की, छठ पूजा की।

मुख्यतः बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला त्योहार, छठ पूजा श्रद्धालुओं के लिए महापर्व है,.. परंपरा, विश्वास और अध्यात्म की एकबध्यता का प्रतीक है । कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को छठ पूजा मनाया जाता हैं।सूर्य देव तथा उनकी बहन छठी मैया की अराधना के इस पर्व का संबंध रामायण और महाभारत काल से है। मान्यता है कि मां जानकी ने अयोध्या लौटकर मां गंगा और सूर्य देव की पूजा की थी। तथा महाभारत काल में द्रौपदी ने पांडवों की प्रतिष्ठा और साम्राज्य की पुनः प्राप्ति के लिए सूर्य देव का व्रत किया था। इसका वृत का वर्णन पौराणिक कथाओं में भी आता है। 

गंगा के घाट पर , सूर्य की पुजा कर व्रती अपनी संतान की दीर्घायु , सुयश तथा मंगल की कामना करती हैं।

यह त्यौहार कुल 4 दोनों का होता है जिसका प्रारंभ नहाए खाए से होता है यह व्रत का पहला दिन है जिसमें व्रती दिन में केवल एक बार ही भोजन करते हैं । जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस दिन का महत्त्व स्नान के बाद ही भोजन करने से है।नियमानुसार व्रती गंगा नदी में जाकर स्नान करती हैं। घर वापस आकर शुद्ध सात्विक भोजन बनाती हैं जिसमें कद्दू (लौकी) की सब्जी, चावल और चने की दाल का प्रयोग हो तथा लहसुन, प्याज वर्जित होता है। 

दूसरे दिन को खरना कहते हैं जिसमे संध्या तक निर्जल व्रत का विधान है सांझ में नदी में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के बाद मिट्टी के चूल्हे पर (आम की लकड़ी का जलवा में उपयोग करके) साठी के चावल की गुड़ वाली खीर और गेहूं के आटे की रोटी बनाई जाती है। केले के पत्ते पर प्रसाद परोस कर व्रती भोजन ग्रहण करती हैं । और खरना के सांझ से आरंभ होता है 36 घंटे का निर्जल व्रत।

फिर तीसरा दिन होता है संध्या अर्घ्य का जिसमें गंगा के घाट पर अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य देकर आराधना की जाती है। चौथा और अंतिम दिन भोर अर्घ्य का है जब श्रद्धालु घाट पर सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हैं और उदित होते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है।

छठ पूजा का केवल अध्यात्मिक महत्त्व नहीं बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक कारणों से भी महत्वपूर्ण है। सामाजिक समरसता का ये पर्व सभी जाति, वर्ग तथा संप्रदाय के लोगों को जोड़ता। भरी खरीद–बिक्री जैसी आर्थिक गतिविधियों से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। वस्तुतः छठ प्रकृति और पर्यावरण की पूजा का त्योहार है , जिसमे होने वाली सभी रीतियां हमे स्वस्थ और सुखी बनने में मदद करती है। अर्घ्य देते समय जल से परावर्तित होकर सूर्य की किरणे सात रंगों में बिखर जाती है और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाती हैं। तथा इस ऋतु परिर्वतन के समय पूजा में उपयोग किए जाने वाले प्रसाद (फल और पकवान) हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते है।

बात जब छठ पूजा की हो तो महाप्रसाद ठेकुआ को कैसे भुला जा सकता है। गुर, गेहूं के आटे और घी से बनने वाला ये पकवान स्वाद और पोषण का बेजोड़ उद्धरण है। 

कुछ ख़ास बात तो आवश्य है इस त्यौहार में तभी लोग चाहें देश के किसी कोने में हो या विदेश ही में क्यों ना हो वो नहीं भूलते अपना लोकत्योहर और इसकी अलौकिक अनुभूति को।


जय छठी मैया!






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